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प्राधिकरण से वित्त पोषित योजनायें

अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए विशेष पहल

राज्य में आदिम जाति के विकास के लिए एक विशेष पहल कर माईक्रो प्लानिंग को अधिक असरदार बनाने, विकास प्रक्रिया में जनप्रतिनिधियों को एक मंच में लाने के लिए वर्ष 2004-05 में क्रमशः बस्तर एवं दक्षिण क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण, सरगुजा एवं उत्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण का गठन किया गया।

दोनों प्राधिकरणों में आदिम जाति तथा अनुसूचित जनजाति विकास से संबंधित, महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री, क्षेत्र के सांसद, विधायक एवं जिला पंचायतो के अध्यक्ष को प्राधिकरण का सदस्य बनाया गया। प्राधिकरण की बैठकों में संबंधित विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों एवं क्षेत्र के अन्य जनप्रतिनिधियों को विशेष आमंत्रित के रूप में बैठक में आहुत किया जाता है।

क्षेत्र -
क्र. प्राधिकरण
01 बस्तर एवं दक्षिण क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण
02 सरगुजा एवं उत्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण
प्राधिकरण के गठन के उद्देश्य -
  1. अनुसूचित जनजातियों के विकास के लिए प्रावधानित राशियों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उच्च स्तरीय पर्यवेक्षण की नीति।
  2. क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप विकास कार्यों की त्वरित स्वीकृति एवं क्रियान्वयन।
  3. विकास प्रक्रिया में जन प्रतिनिधियों को प्रत्यक्ष रूप से जोड़ा जाना।

प्राधिकरण की बैठकों में स्थानीय समस्याओं पर गहरी चर्चा होती है तथा त्वरित निर्णय भी लिया जाता है। इससे आम जनता की पहुंच सीधे शासन तक संभव हुई है। प्राधिकरण की इन बैठकों में ऐसे जनकल्याण के कार्यों को त्वरित स्वीकृति दिया जाना संभव हुआ है जो की अन्य विभागीय योजनाओं के माध्यम से प्रायः स्वीकृत नहीं हो पाते हैं।

शहीद वीर नारायण सिंह स्वालंबन योजना (अनु. जन जाति के लिए)

प्रस्तावना:-
छत्तीसगढ़ राज्य के अनुसूचित जनजाति वर्ग के असहाय, साधन विहिन व्यवसाय के इच्छुक को प्रशिक्षित कर आर्थिक रूप से सक्षम/समर्थ बनाने (आर्थिक उत्थान) हेतु यह योजना है । छत्तीसगढ़ राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम, वर्तमान में विभिन्न राष्ट्रीय निगमों के द्वारा प्रायोजित योजनाएं "राज्य चैनेलाईजिंग" के रूप संचालित करता है । छत्तीसगढ़ राज्य की प्राधिकरण से वित्त पोषित शहीद वीर नारायण सिंह स्वावलम्बन योजना निगम द्वारा क्रियान्वित की जा रही हैं। अनुसूचित जनजाति विकास प्राधिकरण से प्राप्य राशि से अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को स्वावलम्बी बनाने हेतु "शहीद वीर नारायण सिंह स्वावलम्बन" के नाम से योजना संचालित की जा रही हैं।

उद्देश्य:-

आर्थिक रूप से पिछड़े हुये अनुसूचित जनजाति वर्ग के ऐसे असहाय व्यक्ति जो स्वयं का व्यवसाय/उद्योग स्थापित करने के इच्छुक हैं किन्तु उनके पास कोई व्यावसायिक पृष्ठ भूमि नहीं है अथवा स्वयं के साधन एवं पूंजी नहीं है, उन्हें आर्थिक योजनाओं में प्रशिक्षण, साधन एवं पूंजी उपलब्ध कराते हुए व्यवसाय में स्थापित कराना है, ताकि वे समाज की मुख्यधारा से जुडें और व्यावसायिकता की ओर प्रोत्साहित होे।

क्षेत्र:-

यह योजना अनुसूचित जनजाति के सर्वांगीण विकास के लिए छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गठित अनुसूचित जनजाति विकास प्राधिकरण क्षेत्रांतर्गत जिलों में लागू होगी, जिसमें भूमि पर दुकान निर्माण एवं व्यावसाय की कार्यशील पूंजी प्रदान की जावेगी ।

दुकान की भूमि से आशय योजना बाजार क्षेत्र/व्यवसायिक कारोबार वाले स्थानों पर स्वयं हितग्राही के नाम की भूमि, शासन द्वारा प्रदत्त भूमि, स्थानीय निकाय से प्राप्त भूमि या परिवार के सदस्यों से उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त भूमि, अथवा दान से प्र्राप्त भूमि, या अन्य स्रोत से विधिवत् प्राप्त भूमि से है जिसमें की हितग्राही दुकान निर्माण कर स्वयं दुकान का मालिक बन सके। यह स्पष्ट रहे, कि दुकान निगम के पक्ष में बन्धक रख कर व्यवसाय संचालन हेतु कार्यशील पूंजी निगम के द्वारा उपलब्ध कराये जावेगी। उपलब्ध कराई गई राशि की सतत् किश्ते वापस करने वाले हितग्राही को व्यावसायिक प्रोत्साहन दिया जावेगा ।

कार्यक्षेत्र

अनुसूचित जनजाति बाहुल्य 12 जिले

जगदलपुर नारायणपुर कोण्डागांव कांकेर
दंतेवाड़ा बीजापुर सुकमा सरगुजा
सूरजपुर बलरामपुर कोरिया जशपुर
कोरबा (वि.खं. कोरबा, करतला, पाली, कटघोरा, पोड़ी)
स्वरूप:-

स्वरोजगार स्थापित करने हेतु दुकान निर्माण के लिए अचलपूंजी, एवं व्यवसाय संचालन के लिए कार्यशील पूजीं ऋण स्वरूप में उपलब्ध करायी जावेगी । व्यवसाय के इच्छुक चयनित हितग्राही को निशुल्क प्रशिक्षण दिया जावेगा।

ऋण सीमा:-

प्रत्येक हितग्राही को अपने व्यवसाय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अधिकतम निम्नानुसार ऋण राशि की पात्रता होगी:-
इकाई लागत
हितग्राही संख्या मद राशि
1(एक) हितग्राही अचल पंजी
चलपूंजी
1.40 लाख
0.60 लाख
एक इकाई- कुल लागत राशि रू. एक लाख पचास हजार

हितग्राही की पात्रता:-

योजना हेतु निम्नलिखित व्यक्ति पात्र होंगें:-
  1. आवेदक अनुसूचित जनजाति वर्ग का हो ।
  2. आवेदक जिले के अनुसूचित जनजाति प्राधिकरण क्षेत्र का मूल निवासी हो ।
  3. आवेदक की आयु न्यूनतम 18 वर्ष हो ।
  4. आवेदक की वार्षिक आय ग्रामीण क्षेत्र में रू. 98,000/- एवं शहरी क्षेत्र में रू. 1,20,000/- से अधिक न हो ।
  5. आवेदक आठवीं कक्षा उत्तीर्ण शिक्षित बेरोजगार हो, महिला एवं विकलांग हितग्राहियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  6. आवेदक द्वारा पूर्व में किसी भी संस्था से प्राप्त ऋण का बकायादार न होने का शपथ-पत्र या नोड्यूज देना अनिवार्य है।
  7. अनुबंधपत्र निष्पादन के लिए सहमत हो ।
दुकान-निर्माण एजेंसीः-

निर्माण एजेंसी के रूप में हितग्राही स्वयं या कलेक्टर के निर्णय अनुसार हितग्राही की सहमति से ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, लोक निर्माण विभाग, हाउसिंग बोर्ड, आदिम जाति विकास विभाग आदि निर्माण एजेंसी हो सकते है। अनुसूचित जनजाति बाहुल्य ग्रामों के 10-15 किलोमीटर के दायरे में बसे अनुसूचित जनजाति बाहुल्य जनसंख्या वाले ग्रामों के हितग्राहियों को लाभ दिया जा सकेगा। न्यूनतम दुकान की साईज 150 वर्गफुट होगी।

ऋण आबंटन की शर्ते:-

हितग्राहियों को ऋण आबंटित करने की निम्नलिखित शर्तो का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा:-
  1. आबंटिती द्वारा दुकान स्वयं संचालित करनी होगी ।
  2. जिला समिति की पूर्वानुमति के बिना आबंटिती दुकान में कोई स्थाई या अस्थाई परिवर्तन नहीं करेगा ।
  3. निर्धारित मासिक किश्त आबंटिती द्वारा देय माह के 10 तारीख के पूर्व जमा करना होगा।
  4. आबंटित दुकान न तो किसी अन्य व्यक्ति को किराए पर दी जावेगी, और न ही किसी अन्य व्यक्ति को उसका आधिपत्य दिया जावेगा ।
  5. व्यवसाय संचालन के लिए निर्मित दुकान जिला समिति के पास बंधक (Mortgage) किया जाना होगा। जो कि ऋण अदायगी तक बंधक रहेगा।
  6. योजना प्रोत्साहन का लाभ निर्धारित किश्तें मासिक रूप में जमा करने पर ही प्राप्त होगा अन्यथा पूर्ण ऋण मय ब्याज देय होगा।
दुकान का सदुपयोग:-

योजनान्तर्गत अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों के विकासखंड मुख्यालय अथवा जहां व्यावसायिक दृष्टि से बाजार की अच्छी संभावना हो ऐसे जगह पर दुकानों का निर्माण किया जावेगा। आबंटन की शर्तो के उल्लंघन की स्थिति में दुकान का सदुपयोग न होने पर आबंटन समाप्त किया जावेगा:-

  1. यदि दुकान आवंटिती द्वारा स्वयं संचालित नहीं हो ।
  2. आवंटिती द्वारा अन्य व्यक्ति को किराए पर दी गयी हो
  3. नियमित रूप से बिना पर्याप्त कारण यदि वसूली का भुगतान न कर रहा हो।
  4. दुकान नियमित रूप से संचालित न हो रही हो ।
  5. लंबी अवधि तक दुकान बंद रखी जा रही हो।
उक्त कारणों से ऋण राशि मय ब्याज की वसूली हितग्राही से भू-राजस्व संहिता अधिनियम के तहत वसूली होगी एवं दुकान का आबंटन निरस्त किया जा सकेगा।

स्वरोजगार हेतु वित्त व्यवस्था:-

स्वरोजगार स्थापना करने हेतु दुकान आबंटन करना पर्याप्त नहीं होगा, बल्कि उन्हें साज-सज्जा, कार्यशील पूंजी आदि हेतु भी ऋण की सहायता आवश्यक होगी। इस हेतु कुल राशि रू. 1,00,000/- के स्थान पर रू. 1,50,000/- तक में योजना के अनुरूप 4 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर पर ऋण की व्यवस्था की जावेगी। ऋण के निर्धारित मासिक किश्तों का 5 वर्ष की अवधि में ब्याज सहित चुकाना होगा। नियमित किश्तें तीन वर्ष ब्याज सहित अदायगी करने की स्थिति में दुकान का मालिकाना हक हितग्राही को दे दिया जावेगा।

हितग्राही का चयन:-

हितग्राही का चयन छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गठित चयन समिति द्वारा किया जावेगा।

प्रशिक्षण:-

व्यवसाय की सफलता के लिए व्यावसायिक मनोविज्ञान आवश्यक है। अतएव "शहीद वीर नारायण सिंह स्वावलम्बन" का लाभ प्रदान करने के लिए चुने गये हितग्राही को विशेषकर जो व्यवसाय करने के इच्छुक हैं, उन्हें ऋण प्राप्त करने के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण लेना आवश्यक होगा। अंत्यावसायी वित्त एवं विकास निगम द्वारा इस प्रशिक्षण की व्यवस्था व्यवसाय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए की जावेगी।
  1. प्रशिक्षण अवधि (तीन सप्ताह से 12 सप्ताह तक)
  2. प्रशिक्षण मानदेय राशि - रूपये 2000/- राशि प्रति प्रशिक्षणार्थी की मान से (शिष्यावृत्ति देय नहीं होगी)
  3. प्रशिक्षण व्यय - रूपये 2000/- राशि प्रति प्रशिक्षणार्थी की मान से (शिष्यावृत्ति देय नहीं होगी)
ऋण अवधि एवं वसूली:-

योजना के अंतर्गत प्रदाय ऋण राशि अधिकतम 60 मासिक किश्तों में वसूली योग्य होगी। वसूली योग्य राशि की किश्त की गणना मूलधन एवं ब्याज को ध्यान में लेकर निर्धारण की जावेगी। किश्त राशि कार्यशील पूंजी विमुक्ति के तीन माह बाद से देय होगी।

हितग्राही प्रोत्साहन योजना:-

  1. प्रोत्साहन मूल्य एवं आकार - प्राधिकरण द्वारा स्वीकृत मूल योजना में 50% की छूट का प्रावधान रखा गया है इसमें परिवर्तन कर अब इकाई लागत की 75% राशि प्रोत्साहन के रूप में प्रावधानित होगी। रू. 60,000/- के स्थान पर रू. 1,00,000/- की निर्मित दुकान में (जिसका निर्माण हितग्राही द्वारा व्यवसाय करने हेतु किया गया है) 3 वर्ष लगातार रियायती किश्तें चुकाने पर दुकान का मालिकाना हक हितग्राही को प्राप्त हो जावेगा।
  2. योजना- बगैर ग्यारन्टी सामान्य अनुबंध पर योजनांतर्गत रू. 60,000/- के स्थान पर रू. 1,00,000/- अचल संपत्ति में (दुकान निर्माण) एवं कार्यशील पूंजी में रू. 40,000/- के स्थान पर रू. 50,000/- हितग्राही को बतौर ऋण दिये जा रहे है, रू. 60,000/- के स्थान पर रू. 1,00,000/- की हितग्राही द्वारा निर्मित की गयी दुकान को बंधक कर रू. 40,000/- के स्थान पर रू. 50,000/- नगद दिया जाना हैं।
  3. बंधक मुक्त - निरन्तर व्यवसायरत हितग्राही 3 वर्ष पश्चात् रू. 60,000/- के स्थान पर रू. 1,00,000/- के बंधक से मुक्त हो जावेगा अर्थात् दुकान का मालिकाना हक हितग्राही का ही रहेगा।
  4. रियायती किश्तें - 60 किश्तों की 5 वर्ष की योजन में नियमित मासिक किश्त चुकाने वाले हितग्राही की मात्र 3 वर्ष तक रू. 1,027/- के स्थान पर रू. 1542/- प्रतिमाह की किश्त होगी, मासिक किश्त चुकाने में चूक करने वाले हिेतग्राही प्रोत्साहन से वंचित होंगे। जो हितग्राही किश्त चूकाने में नियमितता नहीं रखेंगे उनकी उसी अनियमित माह से मासिक किश्त रू. 1,867/- के स्थान पर रू. 2800/- प्रतिमाह देय होगी।
  5. प्रोत्साहन लाभ- योजना में इकाई लागत रू. 1.00 लाख के स्थान पर रू. 1.50 लाख होने पर उसी अनुपात में नियमित तीन वर्ष तक मासिक किश्त अदा करने वाले को रू. 75,000/- के स्थान पर रू. 1,12,500/- की राशि रियायती किश्तों एवं दुकान के मालिकाना हक के रूप में प्राप्त होगी।

टीपः-

  1. नियमित व्यवसाय संचालित करके किश्त अदायगी भी नियमित करने वाले हितग्राही रू. 1027/- प्रतिमाह के स्थान पर रू. 1542/- प्रतिमाह वसूली जमा करेंगे ।
  2. अनियमित किश्त जमा करने वाले हितग्राही को रू. 1867/- किश्त के स्थान पर रू. 2800/- जमा करना होगा ।

राशि का सदुपयोग:-

हितग्राही यदि राशि का सदुपयोग नहीं करता है या नियमिति निर्धारित किश्त जमा नहीं करता है तो हितग्राही से इकाई लागत की संपूर्ण राशि (मूलधन + ब्याज सहित) एक मुश्त वसूली का अधिकार रहेगा।

ब्याज दर:-

मूल योजना में ब्याज दर 6% वार्षिक रखी गई थी जिसमें परिवर्तन कर अब 4% फलेट ब्याज दर रखी जावेगी। अर्थात योजना अवधि में कुल ऋण राशि पर मात्र 4% वार्षिक ब्याज होगा।


योजना एक नजर में:-


  • योजना का क्रियान्वयन: छ.ग.राज्य अंत्यावसायी सहकारी वित्त एवं विकास निगम से सम्बद्ध जिला अंत्यावसायी सहकारी विकास समितियों द्वारा योजना को संचालित किया जा रहा है।
  • योजना: अनुसूचित जनजाति वर्ग के स्वयं का व्यवसाय / उद्योग स्थापित करने के इच्छुक ऐसे युवा जिनके पास स्वयं के साधन एवं पूंजी नहीं है उनका व्यवसाय स्थापित कराने की योजना है। स्वयं की, नजूल की या अन्य अनुबंधित भूमि पर दुकान निर्माण करने हेतु राशि दी जाती है तथा दुकान बंधक रखकर कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराई जाती है। योजना में हितग्राही से गारंटी लेना प्रावधानित नहीं है।
  • योजना का कार्य क्षेत्र: प्राधिकरण क्षेत्र के अन्तर्गत सभी जिले।
  • इकाई लागत: योजना की इकाई लागत रू. 1.50 लाख है। (रू. 1.00 लाख दुकान निर्माण $ रू. 0.50 लाख कार्यशील पूंजी)
  • प्रशिक्षण: व्यवसाय के प्रशिक्षण पर रू. 2,000.00 व्यय।
  • चयन : जनप्रतिनिधियों की अध्यक्षता में गठित जिला स्तर पर चयन समिति द्वारा।
  • अवधि: 5 वर्ष की अवधि। रियायती नियमित किश्तरू. 1542.00 प्रति माह चूकाने पर हितग्राही को 3 वर्ष पश्चात् ऋण चुकता माना जाता है। अन्यथा चूक होने पर रू. 2800.00 प्रतिमाह 5 वर्ष तक पूर्ण किश्तें चूकानी होती है।
  • ब्याज दर: ब्याज दर 4 प्रतिशत वार्षिक है।
  • प्रोत्साहन: 3 वर्ष तक नियमित किश्त समय पर चुकाने वाले हितग्राही को 75 प्रतिशत इकाई लागत रू. 1.50 लाख का प्रोत्साहन रू. 1,12,500.00 लाभ दिया जाना प्रावधानित है।

 

योजना में दुकान हेतु 1 लाख एवं कार्यशील पूंजी हेतु 50 हजार कुल राशि रु. 1.50 लाख इकाई लागत में संशोधन की सहमति (भविष्य हेतु) प्राधिकरण से दी गई है | जिसे क्रमशः दुकान हेतु 1.4 लाख रूपये एवं कार्यशील पूंजी हेतु 60 हजार कुल रूपये 2 लाख इकाई लागत होगी |



राष्ट्रीय निगम